लेपाक्षी मंदिर का रहस्य: हवा में लटका स्तंभ और एक अधूरी कहानी

भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर पत्थर, हर दीवार और हर मंदिर के पीछे कोई न कोई कहानी छुपी होती है। कुछ कहानियाँ इतिहास बन जाती हैं, कुछ लोककथाओं में बदल जाती हैं, और कुछ... रहस्य बनकर रह जाती हैं। आज हम आपको ले चल रहे हैं आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गाँव — लेपाक्षी, जहाँ एक मंदिर है जो न सिर्फ श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि विज्ञान के लिए भी एक पहेली बना हुआ है।

यह कहानी है एक स्तंभ की — जो ज़मीन से जुड़ा नहीं है, फिर भी खड़ा है। यह कहानी है विश्वास की, वास्तुकला की, और उस अधूरी चीख की जो सदियों से मंदिर की दीवारों में गूंजती है।

#UnsolvedMystery


मंदिर की ओर यात्रा

मैं एक ठंडी सुबह लेपाक्षी पहुँचा। गाँव शांत था, जैसे समय ने यहाँ चलना छोड़ दिया हो। मंदिर की ओर बढ़ते हुए, रास्ते में कुछ बुज़ुर्ग मिले जो मुझे देखकर मुस्कुराए — जैसे उन्हें पता हो कि मैं किस रहस्य की तलाश में हूँ।

मंदिर का प्रवेश द्वार विशाल था, और उस पर उकेरे गए चित्र — देवी-देवताओं, नर्तकियों और युद्ध के दृश्य — जैसे पत्थरों में जान हो। लेकिन मेरा ध्यान एक ही चीज़ पर था: वह स्तंभ जो ज़मीन से नहीं जुड़ा था।

हवा में लटका हुआ स्तंभ
मंदिर के अंदर लगभग 70 स्तंभ हैं, लेकिन एक स्तंभ ऐसा है जो ज़मीन को छूता ही नहीं। लोग इसे "हैंगिंग पिलर" कहते हैं। मैंने देखा कि एक स्थानीय गाइड एक कपड़ा उस स्तंभ के नीचे से सरका रहा था — और कपड़ा दूसरी ओर निकल गया। यह प्रमाण था कि स्तंभ ज़मीन से ऊपर है।

"यह चमत्कार है, गाइड ने कहा। "कई लोग इसे दैवी शक्ति मानते हैं। कुछ कहते हैं कि अगर आप इस स्तंभ के नीचे से कपड़ा निकालें, तो आपके जीवन की बाधाएं दूर हो जाती हैं।"

मैंने खुद कपड़ा लिया और धीरे-धीरे स्तंभ के नीचे सरकाया। कपड़ा बिना रुके निकल गया। मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं।

विज्ञान की उलझन
मैंने बाद में कुछ पुरातत्वविदों से बात की। उन्होंने बताया कि यह मंदिर विजयनगर साम्राज्य के समय — 16वीं शताब्दी में — बनाया गया था। उस समय की इंजीनियरिंग इतनी उन्नत थी कि आज भी हम उसकी तकनीक को पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं।

कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह स्तंभ वास्तुकला की एक तकनीक है जिसे "कैंटिलीवर" कहते हैं — यानी संतुलन के सिद्धांत पर टिका हुआ। लेकिन सवाल ये है कि अगर यह तकनीक थी, तो बाकी स्तंभों में क्यों नहीं अपनाई गई?

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इस स्तंभ की जांच की, लेकिन कोई ठोस उत्तर नहीं मिला। कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि जब ब्रिटिश इंजीनियरों ने इसे समझने की कोशिश की, तो स्तंभ थोड़ा हिल गया — और तब से उसे छेड़ा नहीं गया।

एक अधूरी चीख
मंदिर की दीवारों पर एक चित्र है — एक आदमी की आँखें फटी हुई हैं, चेहरा दर्द से भरा है। गाइड ने बताया, "यह चित्र उस कारीगर का है जिसने मंदिर बनाया था। कहते हैं कि राजा ने उसे अधूरी मूर्ति बनाने के लिए दंड दिया था। उस कारीगर ने 'लेपाक्षी!' — यानी 'शरीर उठाओ!' — चिल्लाया और वहीं दम तोड़ दिया।"

यह शब्द आज भी मंदिर के नाम में जीवित है — लेपाक्षी

क्या यह स्तंभ उस कारीगर की अधूरी कला है? या उसकी आत्मा का प्रतीक जो आज भी हवा में लटका हुआ है?

श्रद्धा और रहस्य
मंदिर में श्रद्धालु आते हैं, पूजा करते हैं, और स्तंभ के नीचे से कपड़ा सरकाते हैं। कुछ लोग इसे चमत्कार मानते हैं, कुछ रहस्य। लेकिन एक बात तय है — यह स्तंभ लोगों को सोचने पर मजबूर करता है।

क्या विज्ञान हर चीज़ का उत्तर दे सकता है? या कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं जो सिर्फ महसूस की जाती हैं?

निष्कर्ष
लेपाक्षी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है — यह एक रहस्य है जो सदियों से लोगों को आकर्षित करता आ रहा है। हवा में लटका हुआ स्तंभ एक प्रतीक है — उस कला का, उस विश्वास का, और उस अधूरी चीख का जो आज भी मंदिर की दीवारों में गूंजती है।

अगर आप कभी लेपाक्षी जाएं, तो उस स्तंभ के नीचे से कपड़ा ज़रूर सरकाएं। शायद आपको भी कोई उत्तर मिल जाए — या कोई नया सवाल ?

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